-डा० जगदीश व्योम
( लघुकथा )
वृद्ध और निरीह विकलांगों की एक संस्था के अनुरोध पर आदर्श निकेतन शिक्षण संस्था के प्राचार्य ने दरियादिली दिखायी और छात्र-छात्राओं से सहयोग का अनुरोध किया। छात्र-छात्राओं ने लगभग बारह हजार रुपए एक सप्ताह में ही इकट्ठे कर लिये जिनका चेक बनवाकर संस्था को दे दिया गया। संस्था के प्रतिनिधि ने भी छात्र-छात्राओं को प्रमाण-पत्र दिये और पुरस्कार भी।
“सर ! एक छात्र चार सौ रुपये आज लाया है, लेकिन चेक तो संस्था को भेज दिया गया है............... अब क्या किया जाय ?”............................विद्यालय के शिक्षक राम गोपाल ने प्राचार्य से पूछा।
“ आप ये रुपए लेकर अपने पास रख लीजिये, फिर इन्हें भेजने की व्यवस्था करते हैं।”
“ ठीक है ” कहते हुये रामगोपाल ने एक लिफाफे में रखकर रुपए सुरक्षित रख दिये।
“ रामगोपाल जी ! पिछले सप्ताह निरीक्षक दल के चाय नाश्ते का बिल लेकर ये महाशय आये हैं...............ऐसा करिये........आप ........वो चार सौ रुपये इन्हें दे दीजिये, और इनसे रसीद ले लीजिये।“- एक व्यक्ति की तरफ संकेत करते हुये प्रिंसिपल ने निर्देश दिया।
रामगोपाल जी चार सौ रुपये की रसीद हाथ में थामे शून्य में न जाने क्या ताकते रह गये।
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