Saturday, June 25, 2011

आदत

-डा० जगदीश व्योम    
( लघुकथा )

    सब्जी वाला जब किसी तरह छः रुपए किलो से कम पर लौकी और टमाटर देने को तैयार नहीं हुआ तो मैंने आधा-आधा किलो लौकी-टमाटर और तीन रुपए की एक पाव अदरख देने को कहा। दस रुपए के नोट में से उसने मुझे तीन रुपए वापस कर दिये। मैंने जानबूझकर तीन रुपए चुपचाप जेब में रख लिये।
    “आपको इसने कितने पैसे वापस किये हैं ?”- पत्नी ने मुझसे पूछा।
    “ठीक ही किये हैं...........आओ चलते हैं”- मैंने कहा, और चलने को हुआ।
    “ज़रा देखिये तो”- पत्नी ने फिर दोहराया।
    “मैंने जेब से चुपचाप पैसे निकाले, जिनमें एक दो रुपए का सिक्का था और एक सिक्का एक रुपए का था।”
    “क्यों भाई ! कितने पैसे वापस किये हैं ?”
    “बाबू जी, पूरे पैसे वापस किये हैं............आप हिसाब जोड़ लीजिये।”- सब्जी वाला बोला।
    “नहीं-नहीं......ठीक नहीं दिये हैं।”- मैं एक-एक सब्जी की कीमत पूछने लगा।
    “आलू आधा किलो” - “तीन रुपए ”
    “लौकी आधा किलो” - “तीन रुपए ”
    “अदरख एक पाव”  - “तीन रुपए ”
    “और तुमने मुझे दस के नोट में से तीन रुपए वापस भी कर दिये।”- मैंने जब दो रुपए का सिक्का उसकी ओर बढ़ाया तो उसने उसे लेते हुये मेरी ओर अजीब दृष्टि से देखा।
    “तुम्हें यह सब करने की क्या जरूरत थी ............अरे! ये सब्जी वाले महा हरामखोर होते हैं........कम तौलते हैं, मँहगा देते हैं..........।” - मैंने पत्नी पर झल्लाते हुये कहा।
    “देखिये ! आज अगर आप दो रुपए ज़्यादा ले भी लेते तो आप अमीर तो हो नहीं जाते........हाँ भविष्य के लिये आदत जरूर बिगड़ जाती................ऐसी ही छोटी-छोटी बातों से व्यक्ति की आदत खराब हो जाती है।”
    पत्नी का यह कथन सुनकर मुझे मेरी संवेदनाओं ने एक जबरदस्त झटका दिया..............मैं उनका मुँह ताकता रह गया। मेरी दृष्टि में पत्नी का कद बहुत ऊँचा हो गया। 

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